श्रावण आ जाने पर शिवलिंग पूजा का महत्व बड़ जाता है। भक्त भगवान् शिव के लिए अनेक प्रकार से पूजा अर्चना करते है।शिवलिंग प्रायः हर शिव मंदिर में नजर आ जाता है लेकिन parthiv shivling जिसे मिट्टी से तैयार किया जाता है उसका अपना अलग महत्वा है। रावण संहिता में शुक्राचार्य के द्वारा रावण को पार्थिव शिवलिंग बनाने की विधि सिखाने के बारे में वर्णन मिलता है। इस पोस्ट में हम पार्थिव शिवलिंग बनाने के विधिविधान के बारे में जानेंगे।
पार्थिव शिवलिंग पूजन विधि|Parthiv Shivling vidhi
गुरुदेव शुक्राचार्य ने रावण से कहा-हे पुत्र! अब मैं Parthiv Shivling की श्रेष्ठता तथा महिमा का वर्णन करता हूं। यह पूजा भोग और मोक्ष दोनों को देने वाली है। सर्वप्रथम आह्लिक(दैनिक) सूत्रों में बतायी हुई विधि के अनुसार विधिपूर्वक स्नान और संध्योपासना करके पहले ब्रह्मयज्ञ करें। तत्पश्चात्
देवताओं, ऋषियों, सनकादि मनुष्यों और पितरों का तर्पण करें। अपनी रुचि के अनुसार सम्पूर्ण नित्यकर्म पूर्ण करके शिव स्मरणपूर्वक भस्म तथा रुद्राक्ष धारण करें। तत्पश्चात् सम्पूर्ण मनोवांछित फल की सिद्धि के लिए ऊंची भक्तिभावना के साथ उत्तम पार्थिव लिंग की वेदोक्त विधि से भलीभांति पूजा करें। नदी या तालाब के किनारे, पर्वत पर, वन में, शिवालय में अथवा किसी अन्य पवित्र स्थान में पार्थिव पूजा करने का विधान है। ब्राह्मण शुद्ध स्थान से निकाली हुई मिट्टी को यत्नपूर्वक लाकर बड़ी सावधानी के साथ शिवलिंग का निर्माण करें।

किस मिट्टी से parthiv shivling निर्माण करे
ब्राह्मण के लिए श्वैत(सफ़ेद), क्षत्रिय के लिए लाल, वैश्य के लिए पीली और शूद्र के लिए काली मिट्टी से शिवलिंग बनाने का विधान है अथवा जहां जो मिट्टी मिल जाए, उसी से शिवलिंग बनाएं।
शिवलिंग बनाने के लिए प्रयत्नपूर्वक मिट्टी संग्रह करें। फिर उस शुभ मृत्तिका को अत्यन्त शुद्ध जल से सानकर पिण्डी बना लें और वेदोक्त मार्ग से धीरे-धीरे सुन्दर पार्थिव लिंग की रचना करें। तत्पश्चात् भोग और मोक्षरूपी फल की प्राप्ति के लिए भक्तिपूर्वक उसका पूजन करें। उस Parthiv Shivling के पूजन की जो विधि है, उसे मैं विधानपूर्वक बता रहा हूं, आप लोग सुनो-
पार्थिव पूजन मंत्र|parthiv shivling puja mantra
ॐ नम: शिवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए समस्त पूजन-सामग्री का प्रोक्षण करें-उस पर जल छिड़कें। इसके बाद
भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धत्रीं।
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दूं ह पृथिवीं मा हिं सी:।
इत्यादि मंत्र से क्षेत्र सिद्धि करें, फिर
आपोऽस्मान् मातर शुन्धयन्तु घृतेन नो घृतप्व: पुनन्तु। विश्वं हि रिप्रं प्रवहन्ति-देवीरुदिदाभ्य: शुचिरा पूत एमि।
(यजु, 4/2)
दीक्षातपसोस्तनूरसिं तां व शिवां शग्मां परिदधे भद्रें वर्ण पुष्यन
मंत्र से जल का संस्कार करें। इसके बाद
नमस्त रुद्र मन्वय उतो त इषवे नमः बाहुभ्यामुत ते नमः
(यजु,
6/7)
मंत्र से स्फटिकाबंध (स्फटिक शिला का घेरा) बनाने की बात कही गयी है।
वैदिक शिव पूजन विधि|parthiv shivling ki puja vidhi
“नमः शम्भवाय” मंत्र से क्षेत्रशुद्धि और पंचामृत का प्रोक्षण करें। तत्पश्चात शिवभक्त पुरुष “नमः” पूर्वक नीलग्रीवाय मंत्र से शिवलिंग की उत्तम प्रतिष्ठा करें। इसके बाद वैदिक रीति से पूजन-कर्म करने वाले उपासक भक्तिपूर्वक एतते रुद्रावसं मंत्र से आह्वान करें या ते रुद्र मंत्र से भगवान् शिव को आसन पर समासीन करें। यामिषुं मंत्र से शिव के अंगों में न्यास करें। अध्यवोचत् मंत्र से प्रेमपूर्वक अधिवासन करें। असौ यस्ताम्रो मंत्र से शिवलिंग में इष्टदेवता शिव का न्यास करें। असौ योऽवसर्पति मंत्र से उपसर्पण (देवता के समीप गमन) करें। इसके बाद नमोऽस्तु नीलग्रीवाय मंत्र से इष्टदेव को पाद्य समर्पित करें। रुद्रगायी मंत्र से अर्घ्य दें। त्रयम्बकं मंत्र से आचमन कराएं। पय: पृथिव्यां मंत्र से दुग्धस्नान कराएं। दधिक्राव्णो मंत्र से दधिस्नान कराए। घृत॑ घुतपावा मंत्र से घृतस्नान कराएं। मधुवाता मधुनक्तम मधुमान्नो– इन तीन ऋचाओं से मधुस्नान और शर्करास्नान कराएं। दुग्ध आदि पांच वस्तुओं को पंचामृत कहते हैं।
अथवा पाद्य-समर्पण के लिए कहे गए नमोस्तु नीलग्रीवाय इत्यादि मंत्र द्वारा पंचामृत से स्नान कराएं। तदनन्तर मा नस्तोके 2० मंत्र से प्रेमपूर्वक भगवान् शिव को कटिबन्ध (करधनी) अर्पित करे। नमो घृष्णवे 2! मंत्र का उच्चारण करके आराध्य देवता को उत्तरीय धारण कराएं। या ते हेति:2? इत्यादि चार ऋचाओं को पढ़कर वेदज्ञ भक्त प्रेम से विधिपूर्वक भगवान् शिव के लिए वस्त्र (यज्ञोपवीत) समर्पित करें। इसके बाद नम:श्वभ्यः 23 इत्यादि मंत्र को पढ़कर शुद्ध बुद्धि वाले भक्त पुरुष भगवान् को प्रेमपूर्वक गन्ध (सुगन्धित चन्दन एवं रोली) चढ़ाएं। नमस्तक्षभ्यो 24 मंत्र से अक्षत अर्पित करें। नम: पर्याय 5 मंत्र से फूल चढ़ाएं। नम: पर्णाय 25 मंत्र से बिल्वपत्र समर्पित करें। नमः कपर्दिने च 2? इत्यादि मंत्र से विधिपूर्वक धूप दें। नम: आशबे 28 ऋचा से शास्त्रोक्त विधि के अनुसार दीप निवेदन करें।
तत्पश्चात् (हाथ धोकर) नमो ज्येष्ठाय 2? मंत्र से उत्तम नैवेद्य अर्पित करें। फिर पूर्वोक्त त्रयम्बकं मंत्र से आचमन कराएं। इमा रुद्राय ३९ ऋचा से फल समर्पण करें। फिर नमो व्रज्याय 3 मंत्र से भगवान् शिव को अपना सब कुछ समर्पित कर दें। तदनन्तर मा नो महान्तम तथा मा नस्तोके– इन पूर्वोक्त दो मंत्रों द्वारा केवल अक्षतों से ग्यारह रुद्रों का पूजन करें। फिर हिरण्यगर्भ: 32 इत्यादि मंत्र से जो तीन ऋचाओं के रूप में पठित हैं, दक्षिणा चढ़ाएं। देवस्य त्वा 33 मंत्र से विद्वान पुरुष आराध्यदेव का अभिषेक करें। दीप के लिए बताए हुए नमः आशवे इत्यादि मंत्र से भगवान् शिव की नीराजन (आरती) करें। तत्पश्चात् हमा रुद्राय इत्यादि तीन ऋचाओं से भक्तिपूर्वक रुद्रदेव को पुष्पांजलि अर्पित करें। मा नो महान्तम 3 मंत्र से विज्ञ ‘उपासक पूजनीय देवता की परिक्रमा करें।
फिर उत्तम बुद्धि वाले उपासक मा नस्तोके मंत्र से भगवान् को साष्टांग प्रणाम करे। एष ते 3!मंत्र से शिव का प्रदर्शन करें। यतो यत: 35 मंत्र से अभय नामक मुद्रा का, त्रयम्बकं मंत्र से ज्ञान नामक मुद्रा का तथा नमः सेना 37 इत्यादि मंत्र से महा का प्रदर्शन करें। नमो गोभ्य 35 ऋचा
द्वारा धेनुमुद्रा दिखाएं। इस तरह पांच मुद्राओं का प्रदर्शन करके शिव सम्बंधी मंत्रों का जप करें तथा वेदज्ञ पुरुष शतरुद्रिय 2? मंत्र की आवृत्ति करें। तत्पश्चात् वेदज्ञ पुरुष पंचांग पाठ करें।
पार्थिव शिवलिंग का विसर्जन कैसे करें|parthiv shivling visarjan mantra
तदनन्तर देवा गातु 4० इत्यादि मंत्र से भगवान् शंकर का विसर्जन करें। इस प्रकार शिव पूजा की
वैदिक विधि का विस्तार से प्रतिपादन किया गया।
पार्थिव पूजन की वैदिक विधि|Parthiv Shivling vedic
अब संक्षेप में भी पार्थिव पूजन की वैदिक विधि का वर्णन सुनो- सद्योजात 4! ऋचा से Parthiv Shivling बनाने के लिए मिट्टी ले आएं। वामदेवाय 42 इत्यादि मंत्र पढ़कर उसमें जल डालें।जब मिट्टी सनकर तैयार हो जाए तब अघोर १ मंत्र से लिंग निर्माण करें। फिर तत्पुरुषाय 4 मंत्र से विधिवत् उसमें कान शिव का आह्लान करें। तदनन्तर ईशान 45 मंत्र से भगवान् शिव को वेदी पर स्थापित करें। सिवाय अन्य विधानों को भी शुद्ध बुद्धि वाले उपासक संक्षेप में ही सम्पन्न करें। इसके बाद विद्वान पुरुष पंचाक्षर मंत्र से अथवा गुरु के दिए हुए किसी अन्य शिव सम्बंधी मंत्र से सोलह उपचारों द्वारा विधिवत पूजन करे अथवा भवाय भवनाशाय महादेवाय धीमहि। उग्राय उग्रनाशाय शर्वाय शशिमौलिने(20/43) मंत्र द्वारा विद्वान उपासक भगवान् शंकर की पूजा करें। वे भ्रम छोड़कर उत्तम भाव-भक्ति से शिव की आसधना करें, क्योंकि भगवान् शिव भक्ति से ही मनोवांछित फल देते हैं।
यहां जो वैदिक विधि से पूजन का क्रम बताया गया है, इसका पूर्णरूप से आदर करता हुआ मैं पूजा की एक दूसरी विधि भी बता रहा हूं, जो उत्तम होने के साथ ही सर्वसाधारण के किए उपयोगी है।
Parthiv Shivling की पूजा भगवान शिव के 8 नामों द्वारा|8 Names of Shiva in Hindi

मुनिवरो! Parthiv Shivling की पूजा भगवान् शिव के नामों से बतायी गई है।वह पूजा संपूर्ण अभीष्ट को देने वाली है। मै उसे बताता हूँ ,सुनो हर,महेश्वर,शम्भू ‘शूलपाणि ,पिनाकधृक, शिव, पशुपति और महादेव-ये क्रमशः शिव के आठ नाम कहे गए हैं। इनमें से प्रथम नाम के द्वारा अर्थात् ॐ हराय नमः का उच्चारण करके पार्थिव लिंग बनाने के लिए मिट्टी लाएं। दूसरे नाम अर्थात् ॐ महरेश्वराय नम: का उच्चारण करके लिंग का निर्माण करें। फिर ॐ शम्भवे नमः बोलकर उस पार्थिव लिंग की प्रतिष्ठा करें। तत्पश्चात् ॐ शूलपाणये नमः कहकर उस Parthiv Shivling में भगवान् शिव का आह्वान करें। ॐ पिनाकघृषे नम: कहकर उर शिवलिंग को नहलाएं। ॐ शिवाय नमः बोलकर उसकी पूजा करें। फिर ॐ पशुपते नम: कहकर क्षमा-प्रार्थना करें और अन्त में ॐ महादेवाय नमः कहकर आराध्यदेव का विसर्जन कर दे। प्रत्येक नाम के आदि में ॐ कार और अन्त में चतुर्थी विभक्ति के साथ नमः पद लगाकर बड़े आनन्द और भक्तिभाव से पूजन सम्बंधी सारे कार्य करने चाहिए।
षडक्षर मंत्र से अंगन्यास और करन्यास की विधि भली-भांति सम्पन्न करके फिर नीचे लिखे अनुसार ध्यान करें। जो कैलास पर्वत पर एक सुन्दर सिंहासन के मध्यभाग में विराजमान हैं, जिनके वामभाग में भगवती उमा उनसे सटकर बैठी हुई हैं सनक-सनन्दन आदि भक्तजन जिनकी पूजा कर रहे हैं तथा जो भक्तों के दुःखरूपी दावानल को नष्ट कर देने वाले अप्रमेय- शक्तिशाली ईश्वर हैं, उन विश्वविभूषण भगवान् शिव का चिन्तन करना चाहिए।
भगवान महेश्वर का प्रतिदिन इस प्रकार ध्यान करें
उनकी अंग-कांति चांदी के पर्वत की भांति गौर हैं । अपने मस्तक पर मनोहर चन्द्रमा का मुकुट धारण करने से उनका श्रीअंग अत्यधिक उद्भासित हो उठा है। उनके चार हाथो में क्रमशः परशु ,मृगमुद्रा ,वर एवं अभयमुद्रा शुशोभित है। वे सदा प्रसन्न रहते हैं। कमल के आसन पर बैठे है और देवता लोग चारों ओर खड़े होकर उनकी स्तुति कर रहे हैं। उन्होंने वस्त्र की जगह व्याघ्रचर्म धारण कर रखा है। वे इस विश्व के आदि हैं, बीज (कारण) रूप हैं तथा सबका समस्त भय हर लेने वाले हैं। उनके पांच मुख हैं और प्रत्येक मुखमण्डल में तीन-तीन नेत्र हैं।
अंगन्यास और करन्यास का प्रयोग इस प्रकार समझना चाहिए-
- ॐ ॐ अंगुष्ठाभ्यांनमः
- ॐ न॑ तर्जनीभ्यां नमः
- ॐ म॑ मध्यमाभ्यां नमः
- ॐ शिं अनामिकाभ्यां नम:
- ॐ वां कनिष्ठाभ्यां नम:
- ॐ यं करतलपृष्ठाभ्यां नम:
इति करन्यास ।
- ॐ ॐ हृदयाय नमः
- ॐ न॑ शिरसे स्वाहा
- ॐ म॑ शिखायै वषट्
- ॐ शिं कवचाय हुम्
- ॐ वां नेत्रत्रयाय वौषट्
- ॐ य॑ अस्त्राय फट्
इति हृदयादिन्यास: ।
यहां करन्यास और हृदयादिन्यास के छः-छः वाक्य दिए गए हैं। इनमें करन्यास के प्रथम वाक्य को पढ़कर दोनों तर्जनी अंगुलियों से अंगुष्ठां का स्पर्श करना चाहिए। शेष वाक्यों को पढ़कर अंगुष्ठों से तर्जनी आदि अंगुलियों का स्पर्श करना चाहिए। इसी प्रकार अंगन्यास में भी दाएं हाथ से हृदयादि अंगों का स्पर्श करने की विधि है। केवल कवचन्यास में दाएं हाथ से बाई भुजा और बाएं हाथ से दाईं भुजा का स्पर्श करना चाहिए। अस्त्राय फट् अंतिम वाक्य को पढ़ते हुए दाएं हाथ को सिर के ऊपर से लाकर बाईं हथेली पर ताली बजानी चाहिए। ध्यान सम्बन्धी श्लोक, जिनके भाव-ऊपर दिए गए हैं, इस प्रकार हैं-
कैलास पीठासनमध्यसंस्थ॑ भक्तैः सनन्दादिभिरच्यमानम् ।
भक्तार्तिदावानलहाप्रमेयं ध्यायेदुमालिंगतविश्वभूषणम् ॥
ध्यायेत्रित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चाररुचन्द्रावतंसं ।
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् ॥
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं ।
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्॥
सबको सुख देने वाले हे कृपानिधान भूतनाथ शिव! मैं आपका हूं। आपके गुणों में ही मेरे प्राण बसते है अथवा आपके गुण ही मेरे प्राण-मेरे जीवनसर्वस्व हैं। मेरा चित्त सदा आपके ही चिन्तन में लगा हुआ है। यह जानकार मुझ पर प्रसन्न होइए। कृपा कीजिए, शंकरजी ! मैंने अनजाने में अथवा जान-बूझकर यदि कभी आपका जप और पूजन आदि किया हो तो आपकी कृपा से वह सफल हो जाए। गौरीनाथ ! मैं आधुनिक युग का महान पापी हूं, पतित हूं और आप सदा से ही परम-महान पतितपावन हैं। इस बात का विचार करके आप जैसा चाहें, वैसा करें। हे महादेव! सदाशिव ! वेदों, पुराणों और नाना प्रकार के शास्त्रीय सिद्धान्तों से भी विभिन्न महर्षियों ने अब तक आपको पूर्णरूप से नहीं जाना है। फिर मैं कैसे जान सकता हूं? महेश्वर! मैं जैसा हूं, वैसा ही आपके आश्रित हूं, इसलिए आपसे रक्षा पाने के योग्य हूं। परमेश्वर ! आप मुझ पर प्रसन्न होइए।
इस भाव को संस्कृत भाषा मे “शिवपुराण” मे इस प्रकार दिया गया है –
तावकस्त्वदगुणप्राणस्त्वच्चितोअहं सदा मृड।
कृपानिधे इति ज्ञात्वा भूतनाथ प्रसीद मे।।
अज्ञानघादि वा ज्ञानाज्जप पूजादिकं मया।
कृतं तदस्तु सफलं कृपिया तव शंकर।।
अहं पापी महानघ पवनश्च भवान्महान्।
इति विज्ञाय गौरीश यदिच्छसि तथा कुरु ||
वैदे: पुराणै: सिद्धान्तैऋर्षिभिर्विविधैरपि ।
न ज्ञातोअसि महादेव कुतोअहं त्वां सदाशिव।।
यथा तथा त्वदीयोअस्मि सर्वभावैमहिश्वर।
रक्षणीयस्त्वयाहं वै प्रसीद परमेश्वर ।।
(शिवपुराण वि. 20/56-60)
इस प्रकार प्रार्थना करके हाथ में लिए हुए अक्षत और पुष्प को भगवान् शिव के ऊपर चढ़ाकर उन शम्भुदेव को भक्तिभाव से विधिपूर्वक साष्टांग प्रणाम करें। तदनन्तर शुद्ध बुद्धि वाले उपासक शास्त्रोक्त विधि से इष्टदेव की परिक्रमा करें। फिर श्रद्धापूर्वक स्तुतियों द्वारा शिव की स्तुति करे।
इसके बाद गला बजाकर (गले से अव्यक्त शब्द का उच्चारण करके) पवित्र एवं विनीत चित्त वाले साधक भगवान् को प्रणाम करें। फिर आदरपूर्वक विज्ञप्ति करें। उसके बाद विसर्जन करें।
मुनिवरो! इस प्रकार विधिपूर्वक पार्थिव पूजा बताई गई। यह पार्थिव पूजा भोग और मोक्ष देने वाली तथा भगवान् शिव के प्रति भक्तिभाव को बढ़ाने वाली है।
पार्थिव लिंग निर्माण विधान में प्रयुक्त मंत्रों की क्रमवार सूची इस प्रकार है-
Parthiv shivling puja mantra
- नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च | (यजु, 6/49)
- नमोअस्तु नीलग्रीवाय सहस्राक्षाय मीढुषे । अथो ये अस्य सत्वानोहं तेभ्योऽकरं नमः । (यजु, 6/8)
- एतत्ते रुद्रावसं तेन परो मूजवतोऽतीति | अवततधन्वा विनाकावस: कृत्तिवासा अहिंसन्न: शिवोऽतीहि । (यजु, 3/6)
- मा नो महान्तमुत मा नो अर्भक॑ मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम् । मा नो वधीः पितरं मोत मातरं मा नः प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिष: । (यजु, 6/5)
- या ते रुद्र शिवा तनूघोराउपापकाशिनी । या तस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि । (यजु, 6/2)
- यामिषुं गिरिशन्त हस्ते विभर्ष्यस्तवे । शिवां गिरित्र तां कुरु मा हिं पुरुष जगत् ।(यजु, 6/3)
- अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक् । अहीं सर्वांजम्भयन्त्सवाश्व यातुधान्यो5धराची: परासुव । (यजु. 6/6)
- असौ यस्ताम्रों अरुण उत बश्रु सुमंगल: । ये चैनं रुद्रा अभितो दिक्षु श्रिताः सहस्रशो<वैषां हेड ईमहे । (यजु. 6/6)
- असौ योऽवसर्पति नीलग्रीवो विलोहित: । उतैनं गोपा अदृश्रन्नदृश्रन्नुदहार्य: स दृष्टो मृडयाति नः । (यजु, 6/7)
- यह मंत्र पहले दिया जा चुका है।
- तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात् ।
- त्र्यम्बक॑ यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। ऋयम्बक॑ यजामहे सुगन्धिं पतिवेदनम् । उर्वारुकमिव बन्धनादितों मुक्षीय मामुतः । (यजु, 3/60)
- पय: पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धा: । पयस्वती: प्रदिश: सन्तु महाम् | (यजु. 8/36)
- दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिन: । सुरभि नो मुखा करत्प्रणआयूंषि तारिषत् | (यजु, 23/32)
- घृत घृतपावनः पिबत वसां वसापावान: पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा | दिशः प्रदिश विदिश उद्दिशो दिग्भ्य: स्वाहा । (यजु, 6/9)
- मधु दाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धव: । माध्वीर्न: सन्त्वोषधी: । (यजु. 3/27)
- मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्वार्थिवं रज: । मधु द्यौरस्तु न: पिता । (यजु, 3/28)
- मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमां अस्तु सूर्य्य: | माध्वीर्गावो भवन्तु नः | (यजु, 3/29)
- बहुत से विद्वान ‘मधुवाता’ आदि तीन ऋचाओं का उपयोग केवल मधुस्नान में ही करते हैं और शर्करा स्नान कराते समय निम्नांकित मंत्र बोलते हैं-
अपां रसमद्भयसं सूर्ये संत समाहितम् । अपाय॑ रसस्य यो रसस्तंवो
गृहांभ्युत्तममुपयामगृहीतोअसिन्द्राय त्वां जुष्टं गृह्लाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ।(यजु,9/3)
- मा नस्तोके तनये मा न आयुषी मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिष: । मा नो वीरान् रुद्र भामिनो वधीहृविष्मन्तः सदमित् त्वा हवामहे ।
- नमो धृष्णवे च पमृशाय च नमो निषंगिणे चेषुधिमते च नमस्तीक्ष्णेषवे चायुधिने च नमः स्वायुधाय च सुधन्वने च । (यजु, 16/36)
- या ते हेतिर्मीदुष्टम हस्ते बभूव ते धनु: |तयास्मान्विश्वतस्त्वमयक्ष्मया परि भुजपरि ते धन्वनो हेतिरस्मान्नवृणक्तु विश्वतः |अथो य इषुधिस्तवारे अस्मान्नि धेहि तम्अवतत्य धनुष्द्धं सहस्राक्ष शतेषुधे ।निशीर्य्य शल्यानां मुखा शिवो न सुमना भव नमस्त आयुधायानातताय घृष्णवे।उभाभ्यामुत ते नमो बाहुभ्यां तव धन्वने (4)।(यजु, 16)
- नमः श्वभ्य: श्वपतिभ्यश्च वो नमो नमो भवाय च रुद्राय च नम: शर्वाय च पशुपतये
च नमो नीलग्रीवाय च शितिकण्ठाय च । (यजु. 16/28)
- नमस्तक्षभ्यो रथकारेभ्यश्च वो नमो नम: कुलालेभ्यश्च वो नमो नमो निषादेभ्य:
पुज्जिष्ठेभ्यश्च वो नमो नमः श्वनिभ्यो मृगयुभ्यश्च वो नमः | (यजु, 6/२७)
- नमः पार्याय चावार्याय च नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च नमस्तीर्थ्याय च कूल्याय
च नम: शष्याय च फेन्याय च । (यजु. 6/42)
- नमः पर्णाय च पर्णशदाय च नमः उदगुरमाणाय चामिप्रते च नम आखिदते च प्राखिदाते च नमः इषुक्रिद्ध्यो धनुष्कृभ्दयश्च वो नमो नमो व् किरिकेभ्यो देवना हृदयेभ्यो नमो विचिन्वत्केभ्यो उपुकद्धयो नमो नम आनिहरतेभ्यः । (यजु. 16/46)
- नमः कपर्दिने च व्युप्तकेशाय च नमः सहस्राक्षाय च शतधन्वने च नमो गिरिशयाय
च शिपिविष्टाय च नमो मीदुष्टमाय चेषुमते च | (यजु, 16/29)
- नम आशवे चाजिराय च नमः शीघ्रयाय च शीम्याय च नम ऊर्म्याय चावस्वन्याय
च नमो नादेयाय च द्वीप्याय च | (यजु, 6/3)
- नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च नमः पूर्वजाय चापरजाय च नमो मध्यमाय
चापगल्भाय च नमो जघन्याय च बुध्न्याय च । (यजु, 6/32)
- इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्रभरामहे मती: | यथा शमसद् द्विपदे
चतुष्पदे विश्व पुष्टं ग्रामे अस्मिन्ननातुरम् । (यजु, 6/48)
- नमो व्रज्याय च गोष्ठ्याय च नमस्तल्प्याय च गोह्याय च नमो हृदयाय च
निवेषयाय च नम: काट्याय च गह्नरेष्ठाय च | (यजु, 6/44)
- हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत् । स दाधार पृथिवीं
द्यामुतेमां कस्मै देवाय हाविषा विधेम ।
- यह मंत्र यजुर्वेद के अंतर्गत तीन स्थानों में पठित और तीन मंत्रों के रूप में परिगणित है।
यथा-यजु, 13/4, 23/1तथा 25/10 में।
- देवस्य त्वा सवितु: प्रसवेऽश्चि नोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम् । अश्विनोर्भैषज्येन
तेजसे ब्रह्मवर्चसायाभि षिंचामि सरस्वत्ये॑ भैषज्येन वीर्यायाआद्यायाभी
षिंचामीन्द्रस्येन्द्रियेण बलाय श्रियै यशसेऽभिषिंचामि । (यजु, 20/3)
- एष ते रुद्र भाग: सहं स्वस्राम्बिकया तं जुषस्व स्वाहा । एष ते रुद्र भंग आखुस्ते पशु: । (यजु, 3/57)
- यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु। शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्य ।।(यजु, 36/23)
- नमः सेनाभ्य: सेनानिभ्यश्च वो नमो नमो रशिभ्यो अरथेभ्यश्व वो वो नमो नमः ।
क्षतृभ्य: संग्रहीतृभ्यश्च वो नमो नमो महद्भ्यो अर्भकेभ्यश्च वो नमः ।(यजु. 16/26)
- नमो गोभ्य: श्रीमतीभ्य: सौरभेयीभ्य एव च । मो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो नमो नमः ।। (गोमतीविद्या)
- यजुर्वेद का वह अंश, जिसमें रुद्र के सौ या उससे अधिक नाम आए हैं और उनके द्वारा रुद्रदेव की स्तुति की गयी है। (देखिए यजु, अध्याय 16)
- देवा गातुविदो गातुं विक्त्वा गातुमित । मनस्पत इम॑ देव यज्ञं स्वाहा वाते धाः॥(यजु, 8/21]
- सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः | भवे भवेनातिभवे भवस्व मां भवोद्धवाय नम: ॥।
- ॐ वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कालाय नमः
कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमो बलाय नमो बलप्रमथनाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मथाय नमः ।
- ॐ अधोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्वशर्वेभ्यो नमस्ते3स्तु रुद्ररूपेभ्य: ।
- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात् ।
- ॐ ईशान: सर्वविद्यानामीश्वर: सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्त्रह्माणो ब्रह्मा शिवो मेऽस्तु सदा शिवोम् ।
- हरो महेश्वरः शम्भु शूलपाणि: पिनाकघृक् | शिव: पशुपतिश्वैव महादेव इति क्रमात् ॥।
मुदाहरणसंघट्टप्रतिष्ठहानमेव च | स्र्पणम पूजनं चैव क्षमस्वेति विसर्जनम् ।।
ॐकारादिचतुर्थ्यन्तैर्नमोऽन्तैनार्घ्मभि: क्रमात् । कर्तव्याश्च क्रिया: सर्वा भकत्या परमया मुदा ॥।
इस पोस्ट में हमने जाना की Parthiv shivling की विधि क्या है। हमें parthiv shivling पूजा के मंत्र पोस्ट के आखिरी में दिए है जिन्हे आप ध्यान से पड़े और इसमें हो सकता है की टाइप करने में कुछ गलती भी हो जाये इसलिए इसका ध्यांन रखियेगा।